एक पिता का खत बेटी के नाम ’’….

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  मेरी प्यारी बेटी

 

तुम अब उम्र के उस दौर में हो, जब एक पिता के लिए आवश्यक हो जाता है कि एक पिता वाली भूमिका से ऊपर उठकर एक गुरु या मार्गदर्शक के रूप में वो सब अनुभव साझा करे, जो उसने अपने अनुभव से सीखे ।

तुम्हें याद भी नहीं कि जब तुम पैदा हुई तो मैं और तुम्हारी माँ कितने खुश थे , लेकिन शायद दुनिया या यूँ कहूँ कि रिश्तेदारों के चेहरे पर वो खुशी नहीं थी, जो बेटे के होने पर होती है । पता नहीं , मैनें ये जानने की भरसक कोशिश की कि आज भी समाज बेटी के होने पर उतना या उससे ज्यादा खुश क्यों नहीं होता, जितना बेटे के होने पर होता है, लेकिन कोई तार्किक उत्तर नहीं मिला । ये बात मैं तुमको इसलिए बता रहा हूँ कि ये समाज आज भी बहुत नहीं बदला, इसलिए ये जिम्मेदारी तुम्हारे कन्धों पर हमेशा रहेगी कि समाज की इस सोच को बदलो । और ये तभी हो पाएगा जब तुम कामयाब होकर दिखाओगी और लोगों की सोच को बदलोगी ।

एक पिता के लिए अपनी बेटी परी के जैसे होती है । तुम तो सचमुच की परी ही थी , लेकिन हमेशा याद रखना असली सुन्दरता हृदय की होती है, इसलिए अपने हृदय को सदैव उदात्त गुणों से भरने का सतत प्रयास करना ।

एक बेटी का पिता शायद सदैव ही चिन्तित रहता है, क्योंकि वो जानता है कि बेटी ही है जो आगे भी जब अपना घर बसायेगी तो अच्छे से घर चला पायेगी या नहीं । इसलिए शायद हर पिता अपनी बेटी को संस्कारों से भरने की कोशिश करता है । वो जानता है कि जब भी ससुराल में कोई ऊँच- नीच होगी तो सभी पिता के दिए संस्कारों पर ही उँगली उठायेंगे, लेकिन मैं तुमसे सिर्फ इतना कहूँगा कि जो भी भूमिका हो, उसे पूरी ईमानदारी से निभाना , असत्य के आगे कभी झुकना मत और सच्चाई के मार्ग को कितनी भी तकलीफें आएँ , कभी छोड़ना मत और प्रत्येक परिस्थिति में सदैव समाधान निकालने का सोचना ।

एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है कि तुम उम्र के अब उस दौर में आने वाली हो, जब पिता की सुरक्षा व माँ की ममता से तुमको बाहर निकल कर अपने निर्णय खुद करने होंगे । अच्छे- बुरे हर तरह के लोग मिलेंगे और उनके अच्छे- बुरे होने का निर्णय भी तुमको खुद करना होगा, लेकिन उस समय पिता की ये बात याद रखना कि मीठी- मीठी बातें बोलने वालों और झूठी तारीफ़ करने वालों से ज्यादा से ज्यादा दूर रहने की कोशिश करना , क्योंकि झूठी तारीफ़ आदमी को सबसे तेजी से नीचे ले जाने वाली चीज है । ये भी ध्यान रखना कि आपकी तारीफ़ केवल दो ही कारणों से होती है या तो वह व्यक्ति आपको अच्छे से जान गया है और आपसे सच्चा प्रेम करता है ( हाँलाकि सच्चा प्रेम करने वाला तारीफ से अधिक समालोचना करता है ताकि आप में सुधार हो सके ) या उसका आपसे कोई ना कोई स्वार्थ है । इसलिए जब भी कोई प्रशंसा करे तो सावधान रहना, और विचार अवश्य करना कि इसमें स्वार्थ का कोई तत्व तो नहीं छिपा ।

मेरी बेटी, ये भी हमेशा ध्यान रखना कि स्त्री होने के कारण कई लोग तुम्हारी क्षमताओं पर सन्देह करेंगे, लेकिन अपने आप को कभी कम या कमजोर मत समझना । एक पल के लिए भी ये ख्याल मन में ना आए कि स्त्री को ईश्वर ने कमजोर बनाया है, हाँलाकि दुनिया तुमको इसे महसूस कराना जारी रखेगी, लेकिन मेरे इन शब्दों को ध्यान रखना कि स्त्री ईश्वर की सबसे सुन्दर कृति है और तुम उसकी सबसे सुन्दर कृतियों में से एक हो । अपने स्त्री होने पर हमेशा गर्व करना और हमेशा उस गर्व को बरकरार रखना । स्त्री होने का अर्थ है- समर्पण, प्रेम, ममता, करूणा, दया और त्याग, तो कभी भी इन गुणों को मत त्यागना । यही गुण एक स्त्री को गढ़ते हैं और मुझे खुशी है कि मेरी प्यारी बेटी ये सारे गुण तुम में बचपन से हैं , बस इन्हें कभी खोने मत देना । मुझे लगता है दुनिया की सारी बेटियों में ये गुण बचपन से ही होते हैं लेकिन ये दुनिया उन्हें विकृत कर देती है । इसलिए कोई तुमको विकृत ना कर सके, उसके लिए सदैव अपने गर्व को, अपने संस्कारों को जागृत रखना । अध्यात्म का दामन कभी मत छोड़ना , क्योंकि इंसान के सबसे बुरे वक्त में अध्यात्म ही पतवार का काम करता है । ईश्वर से बढ़कर रक्षा करने वाली, मार्ग दिखाने वाली कोई अन्य शक्ति नहीं, इसलिए जब कोई मार्ग ना समझ आए, किसी से सही सलाह ना मिल पा रही हो तो एकान्त में ईश्वर की शरण जाना, उनसे बढ़कर मित्र, माता व पिता कोई भी नहीं । मैं नहीं जानता कि एक अच्छे पिता वाले गुण मुझ में हैं या नहीं , या मैं अपने पिता के कर्त्तव्यों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से कर पा रहा हूँ या नहीं लेकिन वो परमपिता कभी कोई चूक नहीं करता । इसलिए ईश्वर का हाथ कभी मत छोड़ना ।

एक बात और एक पिता के लिए दुनिया की सबसे प्यारी चीज उसकी बेटी ही होती है, इसलिए पिता की किसी बात से यदि सहमत ना हो, तो कह देना लेकिन कभी दूरी मत बनाना । किसी बात पर मतभेद हो भी, तो भी कभी ये मत सोचना कि पापा अपनी- अपनी चलाते हैं , सम्भव है कि पापा तुमसे सबसे अधिक प्यार करते हैं तो उसके कारण तुमको लेकर थोड़ा अधिक चिन्तित रहते हैं , इसलिए सम्भव है कि सही निर्णय लेने में कोई चूक हो जाए, लेकिन एक पिता कभी भी अपनी बेटी की आँखों में एक आँसू भी नहीं देख सकता । पिता एक ऐसा व्यक्ति होता है जो जिम्मेदारियाँ उठाने के कारण थोड़ा कठोर दिखता है इसलिए अपना प्यार नहीं दिखा पाता लेकिन मेरी बेटी ये बात सच है कि एक पिता के लिए बेटी से अधिक अनमोल तोहफा कोई नहीं होता । बेटी कितनी भी बड़ी क्यों ना हो जाए, लेकिन अपने पिता के लिए वो कभी बड़ी नहीं होती । अपने पिता के लिए हर बेटी अल्हड़, नादान, भोली और हमेशा छोटी ही रहती है, इसलिए वो उसे कभी बड़ी मान ही नहीं पाता , इसलिए कल को जब तुम बड़ी हो जाओ और मैं कभी डांट भी दू, तो यही सोच लेना कि अपने पिता के लिए उसकी बेटी कभी बड़ी नहीं होती ।

 

हाँ, एक दिन जब मैंने पूछा कि तुम बड़े होकर क्या बनना चाहती हो तो तुमने कहा था कि पापा मैं जज बनना चाहती हूँ । ईश्वर करे कि तुम्हारी हर मनोकामना पूरी हो । लेकिन एक बात कहना चाहूँगा कि तुम अपना हर निर्णय लेने मैं हमेशा स्वतन्त्र रहोगी, लेकिन एक बार अपने पिता से सलाह अवश्य ले लेना । हाँ, एक पिता को अच्छा लगता है कि उसकी बेटी निर्णय लेने से पहले उससे एक बार पूछ ले । याद रखना अनुभव हमेशा ज्ञान से बड़ा होता है, इसलिए अपने पिता के अनुभवों का लाभ जिन्दगी के हर मोड़ पर जरुर लेना , भले ही करना वही जो तुम्हारा मन कहे । हाँ, यदि तुम जज बनो तो मेरी एक बात ध्यान रखना कि आज भी आम व्यक्ति न्याय से वंचित है इसलिए एक सामान्य या वंचित व्यक्ति को शीघ्र न्याय मिले, इसका प्रयास करना । ऐसा काम करना जो लोगों का व्यवस्था पर भरोसा दृढ़ हो । यदि भविष्य में अपना लक्ष्य बदलो तो भी मैं, तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ रहूँगा । बस इतना ध्यान रखना- जो भी निर्णय लो, उस पर दृढ़ रहना और जो भी हासिल हो उसका आदर करना । हर काम को और विशेषकर अपने व्यवसाय को पूरी ईमानदारी से करना ।

बस अन्त में, मैं ये जरूर चाहूँगा कि एक स्त्री होने के नाते स्त्रियों के उद्धार व उन्नयन के लिए जो कुछ भी बन पड़े, जरूर करना । एक स्त्री ही सारे संसार को चलाती है । वही उसकी उत्पत्ति व पुष्पन- पल्लवन करती है , इसलिए वह अपने हर रूप में पूजनीय है, इसलिए स्त्री होने के आत्म- गौरव का अनुभव सदैव स्वयं भी करना और तुम्हारे कारण संसार की प्रत्येक स्त्री, स्त्री होने पर गौरव अनुभव करे, ऐसा कार्य करना ।

मैं ही नहीं हर पिता अपनी बेटी पर गर्व करता है, इस गर्व को सदा बनाए रखना और हाँ एक बात और ध्यान रखना कि वो आपनी आकांक्षाएं नहीं लादता बल्कि अपने सपनों को अपनी बेटी में पालता है, वो चाहता है कि उसकी बेटी पंख लगाकर आसमां में उड़े, लेकिन कई बार उसे सिर्फ इसलिए डांटना पड़ता है कि वो जानता है कि पतंग के उडने के लिए उसका धागे से अनुशासित ढ़ंग से जुड़ा रहना जरूरी है, इसलिए संस्कारों और आदर्शों के धागे से, वो अपनी बेटी को बाँधने की कोशिश करता है, ताकि उसकी बेटी आसमानों की ऊँचाईयाँ छू सके, ना कि कटी पतंग की तरह दिशाहीन हो जाए, इसलिए कभी तुम्हारा पिता तुमको डांट भी दे, तो मेरी प्यारी बेटी कभी बुरा मत मानना, यकीन रखना कि वो तुमको दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता है ।

आशा करता हूँ कि तुम मेरे शब्दों में छिपे गहरे मर्म को उम्र के साथ- साथ समझती जाओगी । जब भी मन में गहरे से निराशा छाए, और अपने मन की बात किसी से न कह पाओ तो मेरे इस पत्र को खोलकर पढ़ लेना , कोई ना कोई आशा की किरण जरूर दिखाई दे जायेगी, क्योंकि ये सिर्फ एक खत नहीं, एक पिता का अपनी बेटी को आशीर्वाद भी है ।

ईश्वर करे ,सारे संसार की सारी खुशियां तुम्हारी झोली में समा जाएँ और एक पिता शायद इसके अतिरिक्त कुछ और चाह भी नहीं सकता ।

 

डॉ. श्याम सुन्दर पाठक ‘अनन्त’

( लेखक एक प्रसिद्ध कवि, मोटीवेशनल स्पीकर, लाइफ कोच हैं । इसके साथ- साथ उत्तर प्रदेश में वस्तु एवं सेवा कर में असिस्टेट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं । )

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