कांग्रेस के दावे के उलट शशि थरूर ने किया ट्वीट, बोले- लोकतंत्र और संप्रभुता का प्रतीक है सेंगोल
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने आज नए लोकसभा कक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्थापित किए गए ऐतिहासिक राजदंड ‘सेंगोल’ को लेकर हुए भारी विवाद खड़ा कर दिया है। दरअसल, थरूर ने अपनी पार्टी के विपक्ष जाकर बयान दिया है। तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर की टिप्पणी उनकी पार्टी द्वारा राजदंड के इतिहास पर सरकार के दावों को फर्जी करार दिए जाने के बाद आई है।
शिश थरूर ने किया ट्वीट
शशि थरूर ने एक ट्वीट करते हुए लिखा, “सेंगोल विवाद पर मेरे नज़रिये से दोनों पक्षों के पास अच्छे तर्क हैं। सरकार का यह तर्क उचित है कि राज-दंड पवित्र संप्रभुता और धर्म के शासन को मूर्त रूप देते हुए परंपरा का चलता रहना दिखाता है। विपक्ष का यह तर्क उचित है कि संविधान देशवासियों के नाम पर बना है और संप्रभुता देशवासियों की संसद में देशवासियों के प्रतिनिधित्व में मौजूद है और संविधान किसी राजा को राजसी विशेषाधिकार से मिलने वाला कोई दैवीय अधिकार नहीं है। ”
‘संसद भवन में रहती है संप्रभुता’
शशि थरूर ने लिखा, ” सत्ता और विपक्ष के इन तर्कों में सामंजस्य बैठ सकता है यदि माउंटबेटन द्वारा नेहरू को राज-दंड सत्ता के हस्तांतरण के रूप में दिए जाने वाली विवादास्पद और ध्यान भटकाने वाली कहानी, जिसका कोई प्रमाण नहीं है, को हटा दिया जाए। हमें सीधा कहना चाहिए कि राजदंड सेंगोल शक्ति और प्रभुत्व का पारंपरिक चिन्ह है, जिसे लोकसभा में स्थापित करते हुए, भारत यह निश्चित कर रहा है कि संप्रभुता वहां लोकसभा में रहती है, न कि किसी राजा के पास।”
उन्होंने कहा, “वर्तमान के मूल्यों की पुष्टि के लिए बीते कल के इस प्रतीक को हमें सम्मान देना चाहिए।”
‘नेहरू को भेंट की गई थी राजदंड’
सरकार ने कहा है कि अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए 14 अगस्त, 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ‘सेंगोल’ सौंप दिया गया था।
कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा है कि तत्कालीन मद्रास में एक धार्मिक संस्था द्वारा नेहरू को राजदंड भेंट किया गया था, लेकिन माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू द्वारा इस राजदंड को भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित करने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। इस बात के सभी दावे सादे और सरल हैं।”