देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर में जमीन की जंग, चौंकाने वाले हैं ये ताजा आंकड़े

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देहरादून: प्रदेश के तीन मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में जमीनी विवाद के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं। राजस्व अदालतों के ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो कुल मामलों के 75 फीसदी मामले इन तीन जिलों से ही हैं। हालांकि ऑनलाइन म्यूटेशन प्रक्रिया शुरू होने के बाद मामलों के निपटारे में तेजी भी आई है।

राज्य की कुछ तहसीलें ऐसी भी हैं जहां लंबित मामलों की संख्या शून्य तक जा पहुंची है। प्रदेश में राजस्व विभाग के अंतर्गत राजस्व न्यायालयों के कंप्यूटरीकरण का काम लगभग पूरा हो चुका है। इससे राजस्वों वादों के निपटारे में तेजी आई है। राजस्व विभाग की ओर से 20 फरवरी तक जारी आंकड़ों पर गौर करें तो इससे पता चलता है कि जमीनी वाद के सर्वाधिक मामले तीन मैदानी जिलों में सामने आ रहे हैं।

देहरादून में अब तक एक लाख 79 हजार 272 मामले सामने आए हैं, इनमें 64 हजार 615 अब भी लंबित हैं। दूसरे नंबर पर प्रदेश का हरिद्वार जिला है, यहां एक लाख 12 हजार 149 वाद सामने आए हैं, इनमें से 44 हजार 706 लंबित हैं। तीसरे नंबर पर तराई का ऊधमसिंह नगर जिला है, यहां कुल 91 हजार 553 मामले सामने आए हैं, इनमें 12 हजार 803 लंबित हैं। 

डाटा एंट्री करवाई
राज्य की कुछ तहसीलें ऐसी भी हैं, जहां लंबित मामलों की संख्या शून्य तक है। इनमें किच्छा, खटीमा, पूर्णागिरी, आदीबद्री, धनोल्टी, मुनस्यारी और तेजम का नाम शामिल है। राजस्व न्यायालयों के कंप्यूटरीकरण के बाद वादों की डाटा एंट्री करवाई की जा रही है। अब तक प्रदेश में 411 राजस्व न्यायालयों को ऑनलाइन किया जा चुका है। इससे उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में राजस्व वादों में और कमी आएगी।

जिला कुल मामले लंबित प्रतिशत में
अल्मोड़ा 8446 1172 13.00
उत्तरकाशी 7907 1011 12.00
यूएस नगर 91553 12803 13.00
चंपावत 4197 41 00.97
चमोली 4854 411 08.04
टिहरी 12944 4875 37.66
देहरादून 179272 64615 36.00
नैनीताल 59746 3239 05.04
पिथौरागढ़ 3883 264 06.79
पौड़ी 18299 48 00.26
बागेश्वर 2757 163 05.91
रुद्रप्रयाग 2386 40 01.67
हरिद्वार 112149 44706 39.86
कुल 508395 133388 26.00

राजस्व वादों की शासन स्तर पर हर हफ्ते निगरानी की जा रही है। ऑनलाइन म्यूटेशन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई है। सरकार का प्रयास है सभी तहसीलों में वादों को शून्य प्रतिशत तक लाया जाएगा। मैदानी जिलों में जमीन की खरीद फरोख्त अधिक होने से यहां वादों की संख्या बढ़ जाती है। -चंद्रेश यादव, आयुक्त एवं सचिव, उत्तराखंड राजस्व परिषद।

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