मुख्य अभियंता पर फिर गंभीर आरोप बहू की कम्पनी को लाभ पहुँचाने के लिए गलत तरिके से कर दी ग्रुप हाउसिंग पास
देहरादून विकास प्राधिकरण (MDDA) में मुख्य अभियंता हरिचंद सिंह राणा पर एक बार फिर पद के दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगे हैं। आरोप है कि मुख्य अभियंता ने अपनी बहू की कंपनी को फायदा पहुँचाने के लिए मास्टर प्लान में दर्ज नाले की जमीन पर ग्रुप हाउसिंग पास कर दी, जबकि नियमों के अनुसार ऐसे स्थान पर किसी भी प्रकार का निर्माण वर्जित है।
ड्राफ्टमैन की रिपोर्ट ने खोली पोल
मामले में सामने आई ड्राफ्टमैन की आधिकारिक रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पास की गई ग्रुप हाउसिंग मास्टर प्लान में ‘नाला’ दर्शाई गई भूमि पर ही प्रस्तावित है।

रिपोर्ट के बावजूद मुख्य अभियंता द्वारा नक्शा पास किए जाने ने पूरे प्राधिकरण की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
चार बार रिजेक्ट, पाँचवी बार पास — कैसे?
सूत्रों का कहना है कि यह प्रस्ताव चार बार तकनीकी आधार पर रिजेक्ट हुआ, लेकिन पाँचवीं बार अचानक पास कर दिया गया।
सबसे चौंकाने वाली बात—मास्टर प्लान में नाले के लैंड यूज़ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, जबकि बिना लैंड यूज़ बदले किसी भी प्रकार की ग्रुप हाउसिंग योजना पास ही नहीं हो सकती।
पहले भी गलत नक्शे पर फँसी थीं सौ बच्चों की जान
MDDA के भीतर यह पहला विवाद नहीं है। पौंधा स्थित श्री देवभूमि कॉलेज में नदी बीच तेज बहाव में कई सौ बच्चे फँस गए थे—उस इमारत का नक्शा भी मुख्य अभियंता द्वारा पास किया गया था, जिस पर गंभीर सवाल उठे थे।
भविष्य में ग्रुप हाउसिंग में रहने वालों की जिंदगी खतरे में?
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि नाले की जमीन पर निर्माण करवाना भविष्य में बड़ी त्रासदी का कारण बन सकता है।
कुछ पैसों के लालच में मुख्य अभियंता द्वारा फिर ऐसा निर्णय लेना भविष्य के सैकड़ों परिवारों की जान को खतरे में डालने जैसा है।
उपाध्यक्ष MDDA की क्या मजबूरी?सबसे बड़ा सवाल—
मुख्य अभियंता पर लगातार विवादों, गलत नक्शों और शिकायतों के बावजूद उपाध्यक्ष MDDA द्वारा ऐसे सभी नक्शों को हरी झंडी क्यों दी जा रही है?
क्या कोई “दबाव” या “अंदरूनी मजबूरी” है?
या फिर मुख्य अभियंता की कोई ऐसी “दुखती नस” है, जिस कारण उपाध्यक्ष को हर बार गलत निर्णय मानने पड़ रहे हैं?
हाईकोर्ट में मामला विचाराधीन — फिर कैसे पास हुआ नक्शा?
जबकि यह पूरा मुद्दा पहले से ही हाईकोर्ट में विचाराधीन है, ऐसे में अंदरखाने फाइल पास हो जाना प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है।
कानूनी प्रक्रिया को नजरअंदाज कर फाइल किस दबाव में आगे बढ़ी — यह जाँच का विषय है।
