Sawan Somwar: पहला सोमवार; शिवालयों में उमड़ी भीड़

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रिपोर्ट: आकाश

 

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देवभूमि उत्तराखंड आज भोलेनाथ के जयकारों से गूंज रही है। आज सावन महीने का पहला सोमवार है। यह दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए बेहद शुभ है। सुबह से शिवालयों में जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। सावन के प्रथम सोमवार के अवसर पर सीएम धामी ने विशेष पूजा-अर्चना की। कहा कि देवाधिदेव महादेव का सम्पूर्ण विधि-विधान से पूजन-अर्चन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने भगवान शिव से समस्त प्रदेशवासियों के सुख, समृद्धि एवं राज्य की उन्नति के लिए प्रार्थना की।

 

 

मान्यता है कि सावन सोमवार पर शिव पूजन करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके अलावा जीवन में सदैव सुख-समृद्धि वास करती हैं। ऐसे में आइए इस दिन की पूजा विधि और महत्व को विस्तार से जानते हैं

 

 

श्रद्धा, आराधना और आस्था का केंद्र है प्राचीन कमलेश्वर महादेव मंदिर

श्रीनगर गढ़वाल मंडल का प्राचीन सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर सावन माह में विशेष श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बन गया है। यह मंदिर न केवल उत्तराखंड के शिवभक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसे पांच महेश्वर पीठों में से एक माना जाता है, जहां सिद्धियां प्राप्त होने के कारण इसे सिद्धपीठ कहा जाता है।

 

विशेष महाआरती का आयोजन है किया जाता

सावन के दौरान मंदिर में रुद्राभिषेक, पंचामृत स्नान, गंगाजल व दूध से अभिषेक तथा बेलपत्र अर्पण जैसे पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ शिवलिंग की पूजा की जाती है। सुबह से ही भक्त मंदिर परिसर में जुटने लगते हैं। मंदिर के महंत 108 आशुतोष पुरी के अनुसार, जो भी भक्त निष्काम भाव से फल रस, पंचामृत और मंत्रोच्चारण के साथ भगवान कमलेश्वर का अभिषेक करता है, उसे सभी कार्यों में शिव कृपा से सिद्धि प्राप्त होती है। सावन के सोमवार को विशेष महाआरती का आयोजन किया जाता है। सावन का पवित्र महीना कमलेश्वर महादेव मंदिर में केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, भक्ति और मोक्ष की ओर बढ़ने का एक सशक्त माध्यम बन जाता है। यहां का वातावरण भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है, जो जीवन को एक नई दिशा देने में सहायक होता है।

 

पौराणिक मान्यता और ऐतिहासिक महत्व

पौराणिक मान्यता है कि कमलेश्वर महादेव मंदिर वही स्थल है, जहां श्रीराम ने 108 कमल पुष्प चढ़ाकर ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति के लिए रुद्राभिषेक किया था। यह स्थल पंचकेदार परंपरा से भी जुड़ा है।

 

यहां भगवान विष्णु ने सहस्त्र कमल अर्पित कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया और श्रीकृष्ण ने संतान कामना से खड दीपक पूजा की। आज भी कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को निसंतान दंपति यही पूजा करते हैं।सावन माह में श्रद्धालु सवा लाख बेलपत्र अर्पित कर सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। यह माह समुद्र मंथन के दौरान शिव द्वारा हलाहल विषपान की स्मृति में शिव को समर्पित माना जाता है।

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