उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने प्रदेश की खेल एवं युवा कल्याण मंत्री रेखा आर्य पर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए राज्य निर्वाचन आयोग से सख्त कार्रवाई की मांग की है।
आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप
गरिमा मेहरा दसौनी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में आरोप लगाया कि मंत्री रेखा आर्य ने हल्द्वानी के अंतर्राष्ट्रीय स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स स्टेडियम गौलापार में योजनाओं का लोकार्पण कर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है।
- कार्यक्रम में शामिल योजनाएं:
- क्रिकेट मैदान में फुटबॉल मैदान के निर्माण की योजना (लागत ₹288.06 लाख)।
- अंतर्राष्ट्रीय हल्द्वानी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स स्टेडियम के निर्माण की योजना (लागत ₹1510.93 लाख)।
दसौनी ने कहा कि राज्य में शहरी निकाय चुनावों की घोषणा के बाद आचार संहिता लागू हो चुकी है, जिसके तहत इस प्रकार के कार्यक्रमों और घोषणाओं पर रोक है।
विपक्ष ने उठाए सवाल
गरिमा दसौनी ने सत्ता पक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा:
- दोहरे कानून का सवाल:
- विपक्षी दलों के कार्यक्रमों को तुरंत रोक दिया जाता है, लेकिन सत्ता पक्ष के कार्यक्रम जारी रहते हैं।
- यह स्पष्ट रूप से आचार संहिता के नियमों की अनदेखी और वीआईपी संस्कृति का प्रतीक है।
- राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर सवाल:
- दसौनी ने कहा कि अब सबकी नजरें राज्य निर्वाचन आयोग पर टिकी हैं कि वह मंत्री रेखा आर्य पर कार्रवाई करता है या नहीं।
- यदि कार्रवाई नहीं की गई, तो यह “अपने लोगों पर करम, गैरों पर सितम” की परंपरा को और बढ़ावा देगा।
कार्रवाई की मांग
गरिमा दसौनी ने राज्य निर्वाचन आयोग से निम्नलिखित कदम उठाने की मांग की:
- मंत्री रेखा आर्य को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए।
- आचार संहिता का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए, ताकि कोई भी राजनीतिक दल भविष्य में गाइडलाइंस की अनदेखी न करे।
राजनीतिक विवाद की संभावना
यह मामला सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। कांग्रेस ने इसे जनता के बीच “अन्यायपूर्ण प्रशासन” के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। वहीं, सत्ता पक्ष ने अभी तक इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
गरिमा मेहरा दसौनी का आरोप धामी सरकार पर आचार संहिता के उल्लंघन और वीआईपी कल्चर को बढ़ावा देने का गंभीर आरोप है। अब देखना यह है कि राज्य निर्वाचन आयोग इस मामले में क्या कदम उठाता है और क्या सत्ता पक्ष पर कोई कार्रवाई की जाती है। यदि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो इससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।