रिपोर्ट -आकाश कुमार
उत्तराखंड के आवास विभाग से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है जिसमें छह अधिकारियों को बिना वैध एक्सटेंशन या नियमों के विरुद्ध लंबे समय से डेपुटेशन पर रखा गया है। राज्य सरकार की नई डेपुटेशन नीति स्पष्ट करती है कि कोई भी कर्मचारी 5 वर्षों से अधिक समय तक डेपुटेशन पर नहीं रह सकता, और 55 वर्ष से अधिक उम्र वालों को डेपुटेशन की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके बावजूद, नियमों का खुला उल्लंघन करते हुए मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (MDDA) और हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण (HRDA) में इन अधिकारियों को अनियमित रूप से तैनात किया गया है।
देवेंद्र सिंह रावत: खुद ही एक्सटेंशन करा लाए?
- अक्टूबर 2022 में तीन साल का डेपुटेशन समाप्त
- आवास विभाग ने कोई एक्सटेंशन नहीं दिया
- सिंचाई विभाग के सचिव से स्वविनियोजित 2 वर्ष का एक्सटेंशन ले आए
- जून 2024 में तत्कालीन आवास मंत्री ने भी डेपुटेशन समाप्त किया
- उसके बाद भी एक और साल का एक्सटेंशन ले आए बिना किसी विभागीय NOC के
- 5 वर्ष की सीमा पार कर चुके हैं
दिग्विजय नाथ तिवारी: नियुक्ति के बावजूद एक्सटेंशन?
- तीन साल का डेपुटेशन सितंबर 2024 में समाप्त
- PWD से 2 साल का एक्सटेंशन शर्तों के साथ मिला
- शर्त थी कि आवास विभाग में सहायक अभियंताओं की नियुक्ति होने तक
- जून 2024 में नियुक्तियां हो चुकी हैं, कोई सीट खाली नहीं
- फिर भी एक्सटेंशन दिया गया
शैलेंद्र सिंह रावत: बिना एक्सटेंशन भी जारी सेवा
- दिसंबर 2024 में डेपुटेशन समाप्त
- इसके बाद कोई नया एक्सटेंशन नहीं मिला
- फिर भी रिलीव नहीं किया गया
- यह डेपुटेशन नीति का स्पष्ट उल्लंघन है
विजय सिंह रावत और सुरजीत सिंह रावत नियम से बाहर
विजय सिंह रावत को और सुरजीत सिंह रावत को नियुक्त किया गया था “सहायक अभियंताओं की नियमित नियुक्ति तक” शान द्वारा सहायक अभियंताओं की नियमित नियुक्ति होने के बाद भी इन्हें नहीं हटाया गया
क्या सिर्फ एमडीडीए और एचआरडीए ही पसंदीदा तैनाती स्थल?
रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट हुआ है कि इन सभी अधिकारियों को केवल मसूरी देहरादून और हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण जैसे क्षेत्रों में ही तैनाती चाहिए। राज्य के अन्य जिलों में कार्य करने में इनकी रुचि नहीं होती। यह दर्शाता है कि तैनातियों में चयनात्मकता और राजनीतिक संरक्षण किस हद तक हावी है।सरकार द्वारा बनाए गए नीति नियमों का पालन यदि अधिकारी ही न करें और राजनीतिक/सामाजिक दबावों में नियमों को तोड़ा जाए, तो यह पूरी शासन व्यवस्था पर चोट है। आवास विभाग की यह लापरवाही न केवल नियमों का मखौल उड़ाती है बल्कि योग्य और नियमपरक अधिकारियों के अधिकारों का भी हनन है।
मुख्यमंत्री के आदेशों का मखौल उड़ते अधिकारी
मुख्यमंत्री के आदेशों पर प्रदेश के हित में डेपुटेशन पॉलिसी लाई गई थी परंतु आवास विभाग द्वारा इसका कोई पालन नहीं किया जा रहा आवास विभाग के अधिकारियों की ऐसी क्या मजबूरी है कि माननीय मुख्यमंत्री के आदेशों को मान्यता को तैयार नहीं है सवाल वित्त विभाग पर भी आता है की क्या सिर्फ पॉलिसी जारी करने तक ही सीमित है या फिर पॉलिसी को जमीनी स्तर पर दिखाई दे