देहरादून | संवाददाता रिपोर्ट
मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) में नक्शों की मंजूरी में व्यापक अनियमितताओं और संभावित भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने इस मामले में राज्य के खनन सचिव एवं तत्कालीन उपाध्यक्ष बृजेश संत को फटकार लगाते हुए उन्हें जनहित याचिका में पक्षकार बनाया गया है। हालांकि इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन तकनीकी अधिकारियों — विशेष रूप से सहायक अभियंता (AE) प्रशांत सेमवाiल और मुख्य अभियंता हरी चंद्र सिंह राणा — की रिपोर्टों और अनुमोदनों के आधार पर ये फर्जी नक्शे पास किए गए, उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
पिछले डेढ़ साल से चल रही थी शिकायतें, लेकिन कार्रवाई नहीं
पत्रकार विपुल पाण्डेय द्वारा पिछले डेढ़ साल में एमडीडीए में पास हो रहे नक्शो में गड़बड़ियों को लेकर लगातार शिकायतें दर्ज कराई गईं। मीडिया रिपोर्ट्स और लिखित शिकायतों के माध्यम से मामला कई बार शासन-प्रशासन तक पहुंचाया गया, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद भ्रष्टाचार में संलिप्त अधिकारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
निराश होकर विपुल पाण्डेय ने अंततः उत्तराखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दाखिल की, जिसमें एमडीडीए द्वारा पारित किए गए कई विवादित नक्शों को चुनौती दी गई।
कोर्ट में पेश नक्शे पाए गए त्रुटिपूर्ण, तत्कालीन वीसी को फटकार
कोर्ट में सुनवाई के दौरान जब एमडीडीए द्वारा स्वीकृत नक्शों की तकनीकी जांच की गई, तो वे सभी त्रुटिपूर्ण पाए गए। अदालत ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए तत्कालीन उपाध्यक्ष बृजेश संत को फटकार लगाई और उन्हें केस में नामजद किया।
हालांकि कोर्ट में यह भी सामने आया कि वीसी ने जिन नक्शों को मंजूरी दी, वे उनके अधीनस्थ तकनीकी अधिकारियों द्वारा तैयार और अनुमोदित किए गए थे। ऐसे में जिम्मेदारी केवल शीर्ष अधिकारी पर डालना, जबकि मूल तकनीकी अनियमितताएं नीचे से आई थीं, न्यायसंगत नहीं माना जा सकता।
प्राधिकरण के अधिकारियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि सात सदस्यी जांच कमेटी द्वारा कोर्ट में गलत तथ्य प्रस्तुत किए गए जिसका संज्ञान कोर्ट द्वारा लिया गया, अब इस मामले में देखना दिलचस्प होगा कि जांच कमेटी पर भी कोई कार्यवाही होगी या नहीं
कमिश्नर गढ़वाल की सूझबुझ की वजह से नहीं हो पाया एक बड़ा गलत नक्शा पास
एमडीडीए के अधिकारियो द्वारा एक वेयर हॉउस के गलत नक्शे को पास कराने के लिए दो बार प्राधिकरण ने गलत तथ्यों के साथ दो बार बोर्ड में पास करने के लिए रखा कमिश्नर गढ़वाल की सूझ बुझ से दोनों बार उस नक्शे को पास नहीं किया गया एवं नवम्बर 2024 में बोर्ड द्वारा निर्माण पर कार्यवाई के आदेश दिए गए परंतु धृतराष्ट्र बने प्राधिकरण ने कोई कार्रवाई नहीं की
अधीनस्थ अधिकारियों की भूमिका पर सवाल, लेकिन सरकार खामोश
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस पूरे मामले में जिन अधिकारियों ने तकनीकी अनुमोदन दिया — जिन पर नक्शों के वैध होने की जिम्मेदारी बनती है — वे आज भी अपने पदों पर बने हुए हैं।
सहायक अभियंता प्रशांत सेमवाल और मुख्य अभियंता हरी चंद्र सिंह राणा की भूमिका को लेकर कई सवाल उठे हैं, लेकिन शासन की ओर से अब तक कोई स्पष्ट टिप्पणी या कार्रवाई सामने नहीं आई है।क्या सरकार जानबूझकर इस भ्रष्टाचार को नजरअंदाज कर रही है, या फिर यह मामला अंदरूनी सांठगांठ का शिकार बन गया है?
और भी नक्शे कोर्ट के समक्ष पेश किए जाएंगे
बता दे एमडीडीए द्वारा पास किए गए ऐसे और भी कई नक्शे हैं, जिनमें गंभीर तकनीकी खामियां हैं और जो जल्द ही कोर्ट में पेश किए जायेंगे।यदि उच्च न्यायालय ने इस मामले की गहराई से जांच जारी रखी, तो आने वाले समय में कई और अधिकारी कानूनी घेरे में आ सकते हैं।
एमडीडीए में सामने आया यह मामला सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है, लेकिन सरकार की ओर से अभी भी ठोस कार्रवाई की प्रतीक्षा है।
यदि तकनीकी रिपोर्टों में गड़बड़ी करने वाले अधिकारी सजा से बचते रहे, तो यह केवल एक मामले की बात नहीं रह जाएगी यह पूरे सिस्टम की साख पर सवाल खड़ा करेगा।
