गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के 36वें दीक्षान्त समारोह में राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग कर उत्तीर्ण विद्यार्थियों को डिग्री और मेडल प्रदान किए। दीक्षांत समारोह में कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री श्री गणेश जोशी एवं केन्द्रीय राज्य सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री अजय टम्टा विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर सीडीएस जनरल अनिल चौहान और पद्मश्री प्रेम चन्द्र शर्मा को विज्ञान वारिधि की मानद उपाधि से सुशोभित किया गया।
राज्यपाल/कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि जो छात्र यहां से उपाधि प्राप्त कर रहे हैं वे अपने माता-पिता से आशीर्वाद जरूर ले। विश्वविद्यालय द्वारा नयी शोध, तकनीक विकसित कर कृषकों तक पहुंचा रहा है, जिससे किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकें। उन्होंने हनी, अरोमा एवं मिलेट को बढ़ावा दिए जाने पर बल दिया।
राज्यपाल ने कहा कि पंतनगर विश्वविद्यालय ने पिछले छह दशकों में कृषि क्षेत्र में अद्वितीय योगदान देकर भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह संस्थान कृषि नवाचार, सतत विकास, और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करता आ रहा है।
उन्होंने कहा कि छात्र किसानों के जीवन को बेहतर बनाने, सतत विकास को प्रोत्साहन देने और भारत को वैश्विक मंच पर अग्रणी बनाने के लिए पूरी निष्ठा से कार्य करें। आपकी मेहनत ही देश के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखेगी। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति लाने में पंतनगर विश्वविद्यालय का अहम योगदान रहा है। विश्वविद्यालय के योगदान के लिए विभिन्न पुरस्कार प्राप्त हैं और रैकिंग भी अच्छी है। उन्होंने कहा कि किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए विश्वविद्यालय को बदलते वातावरण की चुनौतियों के अनुसार शोध करने की आवश्यकता है।
केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा ने दीक्षांत समारोह के आयोजन के लिए बधाई देते हुए बदलते वातावरण के अनुसार शोध एवं प्रसार करने के लिए वैज्ञानिकों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यहां से उपाधि प्राप्त कर देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी अच्छे पदों पर कार्यरत हैं।
कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने उपाधि प्राप्त करने वाले छात्रों, उनके अभिवावकों एवं गुरूजनों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त करने के बाद छात्र महत्वपूर्ण संस्थानों में अपना योगदान दे रहें है। उन्होंने कहा कि आठ हजार कृषकों को मौन पालन से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में 2025 तक जैविक खेती का स्तर 50 प्रतिशत से अधिक होगा। उनके द्वारा श्री अन्न के उत्पादन पर बल दिया गया और कहा कि सरकार द्वारा मंडुवा के अलावा अन्य मोटे अनाजों पर भी सब्सिडी मिलनी चाहिए।
सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में प्रतिभाग करने पर प्रसन्नता व्यक्त की और यहां के उपलब्धियों की चर्चा की तथा देश को आगे ले जाने में जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान एवं जय अनुसंधान का बहुत महत्व है। निरंतर नये शोध के द्वारा हम अपनी खाद्यान्न की मांग को पूरा करते हुए आत्मनिर्भर बने रहेंगे। जेनेटिक मॉडिफिकेशन जैसे नयी तकनीक का प्रयोग कर वातावरण की चुनौतियों से निपटा जा सकता है। पद्मश्री श्री प्रेम चन्द्र शर्मा ने अपने अनुभवों को साझा किया और उन्होंने वातावरण को शुद्ध रखने के लिए जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर बल दिया।
कुलपति डॉ. मनमोहन सिंह चौहान ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि लैैण्ड ग्रान्ट पैटर्न की तर्ज पर अमेरिका के इलिनोय विश्वविद्यालय की तकनीकी सहायता से स्थापित इस विश्वविद्यालय ने हरित क्रान्ति के द्वारा देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विगत् 64 वर्षों से लगातार यह विश्वविद्यालय खाद्य फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के अलावा पशुधन, दुग्ध, तिलहन एवं मत्स्य उत्पादन में भी अपना अहम योगदान दे रहा है। कृषि शिक्षा, अनुसंधान तथा प्रसार में अपने अहम योगदान के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा ’सरदार पटेल आउटस्टैंडिंग इंस्टीट्यूशन सम्मान’ से इसे तीन बार सम्मानित किया जा चुका है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर क्यू0एस0 वर्ल्ड रैंकिंग में 331वां स्थान बनाया है। स्थापना से अब तक 44112 विद्यार्थियों को उपाधियां प्रदान की गई हैं।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की 355 उन्नत किस्में एवं पशुओं की दो नस्लें राष्ट्र को समर्पित हैं, जोकि देश में खाद्य सुरक्षा एवं कृषकों की आय बढ़ाने में अभूतपूर्व रूप से सहायक रहीं हैं। विश्वविद्यालय एग्रीकल्चर लीडरशिप 2023 सम्मान से सम्मानित है। पंतनगर विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 वर्ष 2024-25 से लागू कर दी गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को अपनाने वाला यह देश का प्रथम कृषि विश्वविद्यालय है। देश एवं विदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ करार हुए हैं। गत दो वर्षों में दलहन की 10 प्रजातियां विकसित की गयी है। अंत में उन्होंने सभी उपाधि प्राप्तकर्ताओं को दीक्षा दी। इस अवसर पर कुलपति के निर्देशन में बनी ‘विश्वविद्यालय की गत दो वर्ष की उपलब्धियाँ’ नामक पुस्तक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।