साल का पहला चंद्र ग्रहण शुक्रवार को लग रहा है। बैशाख मास की पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा के दिन लग रहा यह एक उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा। इसलिए इस ग्रहण को सरलता से नहीं देखा जा सकेगा। इस ग्रहण को आंशिक और पूर्ण ग्रहण की तरह नहीं मान सकते। इसमें चंद्रमा का कोई भी हिस्सा छिपेगा नहीं बल्कि मटमैला दिखाई देगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तरह के ग्रहण को मांद्यचंद्र ग्रहण कहते हैं। ज्योतिष इस तरह के ग्रहण को ग्रहण नहीं मानते। इसकी धार्मिक मान्यता नहीं है। इसलिए इस दौरान मंदिरों के कपाट बंद नहीं होंगे। किसी ग्रहण के नौ घंटे पहले लगने वाला सूतक भी इस ग्रहण में नहीं लगेगा। इसलिए किसी को घबराने की जरूरत नहीं है।
चार घंटे 17 मिनट का होगा ग्रहण काल
वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला के खगोलविद् अमर पाल ने बताया कि यह उपच्छाया चंद्र ग्रहण पांच मई की रात में 8.45 से शुरू होगा। इस दौरान चंद्रमा के सामने मटमैली से परत छा जाएगी। समापन रात एक बजकर दो मिनट पर होगा। पूरे ग्रहण काल का समय चार घंटे 17 मिनट का होगा। बताया कि अगला सूर्य ग्रहण 14 अक्तूबर को और चंद्र ग्रहण 29 अक्तूबर को आंशिक होगा।
नक्षत्रशाला में दूरबीन से देखने की व्यवस्था
वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला के वैज्ञानिक अधिकारी महादेव पांडेय ने बताया कि नक्षत्रशाला द्वारा विशेष दूरबीन के माध्यम से इस खगोलीय घटना का अवलोकन कराया जाएगा। कोई भी व्यक्ति नक्षत्रशाला पहुंचकर इस खगोलीय घटना को देख सकता है।
ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय ने कहा कि ग्रहण कहीं भी लगे ज्योतिष के लिहाज से इसे अच्छा नहीं मना जाता है। पांच मई को लगने वाला ग्रहण भले ही उपच्छाया चंद्र ग्रहण हो, लेकिन इसमें भी सावधानी बरतनी चाहिए।
अखिल भारतीय विद्वत महासभा के प्रवक्ता पंडित शरद चंद्र मिश्र ने कहा कि उपच्छाया चंद्र ग्रहण होने के कारण इस ग्रहण का कोई असर नहीं होगा। इसलिए ग्रहण के पहले लगने वाला सूतक भी नहीं लगेगा। ऐसे में सभी मंदिरों के कपाट खुले रहेंगे।