पत्रकारिता का काला सच उजागर, तथाकथित पत्रकार को बाहर का रास्ता !

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भदोही, उत्तर प्रदेश: पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, लेकिन जब इसी पेशे से जुड़े कुछ लोग अपने कर्मों से पूरे क्षेत्र को शर्मसार करते हैं, तो सवाल उठना लाजिमी है। ऐसी ही एक घटना सामने आई है भदोही से, जहां एक तथाकथित पत्रकार मिस्बाह खान को देश के नंबर वन हिन्दी दैनिक की स्थानीय यूनिट ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।

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भदोही यूनिट का वायरल पत्र: सच या साजिश?

वाराणसी से प्रकाशित उस प्रमुख दैनिक की भदोही यूनिट ने एक पत्र सोशल मीडिया पर जारी किया, जिसमें स्पष्ट लिखा गया कि मिस्बाह खान अब उस संस्थान का हिस्सा नहीं हैं। पत्र में भदोही के सरकारी विभागों, सांसद, विधायक, पुलिस प्रशासन, सीईपीसी, नगर निकाय और आम जनता को आगाह किया गया कि वे मिस्बाह खान के साथ किसी भी प्रकार की पत्रकारिता या प्रतिनिधित्व की पहचान न जोड़ें।

 

पत्र के प्रमुख बिंदु:

 

* मिस्बाह खान को यूनिट से निष्कासित कर दिया गया है

* उनकी पत्रकारिता से संस्था का कोई संबंध नहीं

* संबंधित सभी संस्थानों और लोगों को सतर्क रहने की अपील

* मिस्बाह की फोटो के साथ जारी हुआ पत्र

वायरल पत्र

कौन हैं मिस्बाह खान?

मिस्बाह खान भदोही क्षेत्र में पत्रकार थे जो लंबे समय से स्थानीय खबरें कवर करते रहे हैं। लेकिन हाल ही में उनके कुछ कथित कृत्य सामने आए, जिनके चलते उनके संस्थान ने यह कठोर निर्णय लिया। हालांकि, उनके खिलाफ लगे आरोपों की सार्वजनिक पुष्टि अब तक नहीं हुई है।

क्या हैं आरोप? (सूत्रों के अनुसार)

सूत्रों और सोशल मीडिया चर्चाओं के अनुसार, मिस्बाह खान पर आरोप है कि वे:

* पत्रकार के नाम पर प्रभाव जमाकर काम निकलवाते थे

* सरकारी अधिकारियों व प्रतिष्ठानों से संपर्क बना रहे थे

* अख़बार के नाम का दुरुपयोग कर रहे थे

हालांकि इन सभी आरोपों की **वॉइस नेशन पुष्टि नहीं करता**, यह केवल सोशल मीडिया पर वायरल पत्र और चर्चाओं पर आधारित जानकारी है।

पत्र का वायरल होना: साख पर असर

पत्र के वायरल होने से भदोही और आस-पास के पत्रकारिता जगत में खलबली मच गई है। आम लोग, संस्थान, सरकारी अधिकारी और पत्रकार इस घटनाक्रम पर चर्चा कर रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर मामला इतना गंभीर था, तो कानूनी रूप से भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

पत्रकारिता में जवाबदेही क्यों जरूरी है?

पत्रकारिता सिर्फ खबर लिखने या वीडियो बनाने तक सीमित नहीं है; यह एक जिम्मेदारी है। जब कोई पत्रकार इस पेशे का गलत उपयोग करता है, तो इससे पूरे मीडिया की साख को ठेस पहुंचती है।

पत्रकारिता की गरिमा बचाने की ज़रूरत

भदोही से मिस्बाह खान का यह मामला पत्रकारिता की दुनिया के लिए एक चेतावनी है। यह साबित करता है कि अगर पेशे में अनुशासन और जवाबदेही न हो, तो यह लोकतंत्र के स्तंभ को खोखला कर सकता है। मीडिया संगठनों को अब और अधिक पारदर्शिता और सख्ती के साथ अपने प्रतिनिधियों की निगरानी करनी चाहिए।

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